मनेन्द्रगढ़ में विजय प्राइमरी स्कूल से पढाई प्रारम्भ हुई और सरस्वती शिशु मंदिर से होते हुए, हायर सेकेंडरी शासकीय बॉयज स्कूल में की, इन दिनों कॉमिक्स और क्रिकेट का दिवाना था। 1996 में मुझे प्रेरणा मिली और मै नव भारत, दैनिक भास्कर , नन्हे सम्राट, बाल हंस जैसी पत्रिकाओं में कहानी, कविता, चुटकुले, व्यंग लेख लिखता, कार्टून बनाता जो प्रमुखता से छपता। यह सिलसिला 2000 तक चला इसकी वजह से शहर में पहचान बनी। सन 2001 में बी. कॉम प्रथम वर्ष के छात्र के रूप में शासकीय विवेकानंद महाविद्यालय मनेन्द्रगढ़ में छात्र राजनीति में पहला कदम रखा और भारतीय राष्ट्रीय छात्र संघटन NSUI की सदस्यता ली।

2004 में पहली बार छात्रसंघ चुनाव में एम. कॉम प्रीवियस में कक्षा प्रतिनिधि का चुनाव जीता, लेकिन उसी वर्ष छात्रसंघ अध्यक्ष का चुनाव एक वोट से हार गया, छात्रसंघ चुनाव में भाजपा के मंत्री खुलकर मैदान में उतरे। हार की समीक्षा की तो पहली बार राजनीति क्या होती है समझ आया। 2004 में मुझे NSUI का अध्यक्ष बनाया गया और अगले वर्ष 2005 में पुनः जोरदार तैयारी कर मैदान में उतरा और भारी हाईवोल्टेज छात्रसंघ चुनाव को बड़े अंतर से जीत दर्ज कर राजनैतिक जीवन की शुरुवात की।

छात्रसंघ अध्यक्ष के रूप में काफी सकारात्मक कार्यों से नगर में पहचान स्थापित की। लॉ कॉलेज बिलासपुर में LLB छात्र के रूप में पढाई प्रारम्भ की लेकिन पूरा ध्यान मनेन्द्रगढ़ कॉलेज में केंद्रित था, जिस वजह से कॉलेज की जनभागीदारी में मुझे क्षेत्रीय विधायक द्वारा अपने प्रतिनिधि के रूप में नियुक्त किया गया।

14 जुलाई 2007 को कॉलेज प्रबंधन ने जनभागीदारी की मीटिंग रखी जिसमे छात्रों के पैसे का दुरूपयोग होने और भारी अनियमितता के खिलाफ हल्ला बोला, जनभागीदारी समिति और प्रोफेशर मेरे खिलाफ हो गए, जनभागीदारी में मेरे आलावा सभी भाजपाई थे। 23 जुलाई को छात्रों के प्रवेश के समय काउंसलिंग के नाम पर संगीत और होम साइंस जैसे विषय जबरजस्ती थोपने और मनचाहे विषय ना देने पर कॉलेज प्रबंधन के साथ हुई मामूली बहस तिल का ताड़ रूप ले लेगी मुझे नहीं पता था, भाजपा मंत्रियों की शह पर राजनैतिक षड्यंत्र कर कॉलेज प्रबंधन द्वारा मुझे और मेरे अन्य निर्दोष साथियों के ऊपर एक्टोसिटी एक्ट., शासकीय कार्य में बाधा, गाली गलौच, मारपीट, जान से मारने की धमकी जैसी अनगिनत धारा लगवां दी, हम डर गये मै और मेरे साथी 3 माह तक अग्रिम जमानत लेने के लिये फरारी काटते रहे, बाद में जब हाईकोर्ट से अंतरिम राहत नहीं मिली तो सरेंडर कर 3 दिन जेल में बिताये, मुकद्दमा चला फिर भी छात्र राजनीति जारी रखी, कॉलेज प्रबंधन एक एक कर कई मुकद्दमे दर्ज कराता रहा, अब तो मन से पुलिस, थाना कोर्ट , कचहरी और जेल का ख़ौफ़ ख़त्म हो गया था, हम कॉलेज जाकर छात्र हित में लड़ाई लड़ते रहे...