कौन निःशुल्क न्याय प्राप्त कर सकता है, किन किन प्रावधान के तहत न्यायालय कानूनी सहायता प्रदान करती है? जानें…
निःशुल्क न्याय का प्रावधान किनको और कैसे
उच्चतम न्यायालय का आदेश
राज्य ऐसे अभियोगी को जो गरीबी के कारण कानूनी सेवाएं प्राप्त नहीं कर सकता है । उसे नि:शुल्क वैधिक सेवाएं उपलब्ध कराए। अगर मामले की स्थिति व न्याय की मांग है तो अभियुक्त के लिए वकील नियुक्त करे, पर यह तभी हो सकता है जब अभियुक्त को वकील की नियुक्ति पर आपत्ति ना हो। मुकदमे की कार्यवाही के दौरान वैधिक सेवाएं न प्रदान कराना संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है । वकील की नियुक्ति के लिए अभियुक्त को आवेदन देने की आवश्यकता नहीं है । मजिस्ट्रेट अभियुक्त को उसके अधिकार से अवगत कराएगा औऱ वकील की नियुक्ति के लिए पूछेगा सरकार का ये कर्तव्य है कि वह कैदियों को निर्णय की कॉपी उपलब्ध कराए। गिरफ्तार व्यक्ति अपनी पसंद के वकील से परामर्श कर सकता है । वकील से परामर्श करने का अधिकार हर व्यक्ति को प्राप्त है ।
सीपीसी के आदेश 32 व 33 के अनुसार-
निम्नलिखित गरीब व्यक्ति कानूनी सहायता प्राप्त कर सकते हैं-
जिस व्यक्ति के पास मुकदमा करने के लिए और कोर्ट की फीस जमा करने के लिए पर्याप्त साधन न हों। तलाक के मामले में कोई भी महिला कानूनी सहायता प्राप्त कर सकती है। अऩुसूचित जाति और अऩुसूचित जाति का कोई भी व्यक्ति कानूनी सहायता प्राप्त कर सकता है। ऐसा व्यक्ति, जिसके पास डिक्री के निष्पादन में कुर्क नहीं की जा सकने वाली संपत्ति तथा विवादग्रस्त विषय के अतिरिक्त 1000 रुपए से अधिक की संपत्ति न हो। उसे कानूनी सहायता मिल सकती है। भरण-पोषण(गुजारा भत्ता) के मामले में कोई भी व्यक्ति कानूनी सहायता प्राप्त कर सकता है। बलात्कार से पीड़ित कोई भी महिला नि:शुल्क सहायता प्राप्त कर सकती है। अपहृत महिला सरकार से कानूनी सहायता प्राप्त कर सकती है । 16 साल से कम उम्र में अपराध करने वाला वक्ति कानूनी सहायता प्राप्त कर सकता है । 11000 रुपए से कम आमदनी वाला कैदी या व्यक्ति सरकार से कानूनी सहायता प्राप्त कर सकता है । कोई भी बालक, महिला, देह व्यापार, बेगार, लोक उपद्रव, जातिगत हिंसा, जातिगत अत्याचार, बाढ़, मानसिक नर्सिंग होम में रहने वाला व्यक्ति कानूनी सहायता प्राप्त करने का हकदार है।
सीपीसी 1908 के आदेश 44 के अनुसार
निर्धन व्यक्ति बिना न्यायालय शुल्क दिए अपीलीय न्यायालय में अपील कर सकता है ।
राष्ट्रीय वैधिक सेवा अधिनियम के उद्देश्य
वैधिक सेवा प्राधिकरणों का गठन, समाज के कमजोर वर्गों को नि:शुल्क तथा सक्षम वैधिक सेवाएं उपलब्ध कराना, यह सुनिष्चित करना कि आर्थिक या अन्य असमर्थताओं के कारण किसी भी नागरिक को न्याय प्राप्त करने के अवसर से वंचित ना किया जा सके, लोक-अदालतों को संगठित कर ऐसी वैधिक प्रणाली की व्यवस्था करना जिससे समान अवसर के आधार पर न्याय सुलभ हो सके।
विधिक सेवा का अधिकार नि:शुल्क विधिक सेवा प्राप्त करने के अधिकारी व्यक्ति
अनुच्छेद 23 के अंतर्गत मानव दुर्व्यापार तथा बलातश्रम से पीड़ित व्यक्ति, महिलाएं, बच्चे , मानसिक या अन्य रुप से अपंग व्यक्ति, सामूहिक दुर्घटना , जातीय हिंसा, जातीय अत्याचार, बाढ़, सूखा , भूकंप या औद्योगिक दुर्घटना से पीड़ित व्यक्ति, संरक्षण गृह, बालगृह , मानसिक अस्पतालों के रोगी, बालगृह तथा मानसिक रोगियों के चिकित्सालयों में रह रहे लोग, 9000 रुपए से कम की सालाना आमदनी या इससे अधिक राशि जो राज्य सरकार ने निर्धारित की हो, यदि उसका मामला सुप्रीम कोर्ट के अलावा अन्य किसी कचेहरी में हो, वह व्यक्ति जिसकी सालाना आय 12000 रुपए से कम हो , या इससे अधिक राशि राज्य सरकार द्वारा निर्धारित की जा सकती है या उसका मुकदमा सुप्रीम कोर्ट में हो, अनुसूचित जाति और जनजाति से संबंधित लोग,. बेगार और अनैतिक देहव्यापार के शिकार लोग, औद्योगिक कामगार औऱ गरीब लोग(राज्य सरकार की तय सीमारेखा के अंदर गरीब)।
प्रवीण जैन अधिवक्ता रायपुर
9406133701
www.praveenjain.in
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