झीरम घाटी कांड: कांग्रेसी नेताओं की हत्या सबसे बड़ा अनसुलझा रहस्य!
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रायपुर। 25 मई 2013 को बस्तर के झीरम घाटी में हुए वारदात का सच क्या है? क्या इस हमले को किसी षडय़ंत्र के तहत अंजाम दिया गया था? क्या ये ‘आन-द-स्पाट’ किया गया हमला था? क्या कांग्रेसी नेता, नक्सलियों की किसी गफलत के शिकार हुए थे? क्या तात्कालीन पीसीसी अध्यक्ष नंदकुमार पटेल की हत्या प्रायोजित थी? क्या नक्सलियों ने ‘सुपारी’ ली थी? क्या कांग्रेसी नेताओं के काफिले को पर्याप्त सुरक्षा नहीं दी गई थी? झीरम कांड की चौथी बरसी पर आज इस वारदात से जुड़े कई ऐसे प्रश्न खड़े हुए हैं, जिनका उत्तर कभी मिल पाएगा, इस पर संदेह अब पूरी तरह से गहराने लगा है। आज चौथी बरसी पर ब्लास्ट न्यूज़ इस वारदात से जुड़े कई ऐसे विषयों को उकेरने जा रहा है, जिन पर चर्चाएं होनी तक अब बंद हो चुकी है।
इस वारदात का सबसे बड़ा रहस्य पटेल की हत्या है। वारदात के करीब साल भर पहले जब पीसीसी अध्यक्ष के रुप में नंदकुमार गरियाबंद क्षेत्र से किसान यात्रा करके लौट रहे थे, तब उनके काफिले पर नक्सलियों ने हमला कर दिया था। इस हमले में एक कांग्रेसी नेता की मौत हो गई थी। हमले के बीच प्रतिउत्तर न मिलने पर नक्सलियों ने फायरिंग रोक दी थी। तब इन्हें (नक्सलियों को) ज्ञात हुआ कि ये कांग्रेसियों का काफिला है। इन्होंने इस काफिले को पुलिस जवानों का काफिला समझकर हमला किया था। वास्तविकता ज्ञात होने के बाद नक्सलियों ने घायल कांग्रेसियों को पानी पिलाते हुए इनका प्राथमिक उपचार भी किया था। चलते-चलते इन्होंने कांग्रेसियों सहित पटेल से इस हमले को ‘भूलवश’ बताते हुए क्षमा भी मांगी थी। छत्तीसगढ़ जब अलग राज्य बना, तब पटेल यहां के पहले गृहमंत्री बने थे। उन्हीं के कार्यकाल में आपरेशन ग्रीनहंट शुरु हुआ था, जिसका विरोध आज भी गाहेबगाहे नक्सली करते ही रहते हैं। इस आपरेशन को लेकर नक्सलियों ने नेताओं को परिणाम भी भुगतने की चेतावनी देते रहे हैं। पर गरियाबंद हमले में जब पटेल सीधे नक्सलियों के साफ्ट टारगेट पर थे, तब हमले को लेकर उनसे क्षमा मांगी जाती है। और ठीक एक साल के बाद झीरम घाटी में उनकी हत्या कर दी जाती है। इसे लेकर ढेरों प्रश्न खड़े हो रहे हैं-
1-वारदात के समय नक्सली, पटेल और उनके पुत्र को घटनास्थल से करीब सौ मीटर दूर क्यों लेकर गए?
2-क्या नक्सलियों के किसी लीडर ने पटेल से वहां बात की?
3-क्या नक्सली, पटेल से कोई जानकारी लेना चाहते थे?
4-किन परिस्थिति में पटेल की नृशंस हत्या की गई?
5-उनके पुत्र को क्यों मारा गया?
वारदात के दौरान साथ रहे प्रत्यक्षदर्शियों ने मीडिया को बताया था कि हमले के बीच नक्सली महेंद्र कर्मा को ढूंढ रहे थे। इस बीच वो कई लोगों को मार भी चुके थे। नक्सलियों की क्रूरता को देखते हुए कर्मा को ऐसा लगा कि शायद उन्हें मारने के लिए ही नक्सलियों ने ये हमला किया था। बयानों के अनुसार, तब कर्मा अपनी गाड़ी से नीचे उतर आए और उन्होंने नक्सलियों को आवाज दे दी। कर्मा को देखते ही नक्सलियों की फायरिंग थोड़ी देर रुकी। कर्मा को पकड़कर वे थोड़ा आगे ले गए। उन पर गोलियों के अतिरिक्त चाकू से भी हमला किया गया। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में कर्मा के सीने की हड्डिया टूटी मिली। कहा गया कि कर्मा को मारने के बाद नक्सलियों ने उनके सीने पर खड़े होकर नाच भी किया था जिससे उनकी हड्डियां टूटी थी। कर्मा को बस्तर टाईगर के नाम से भी जाना जाता था। साल-2005 में शुरु हुए सलवा जुडूम के अग्रणियों में उनकी गिनती होती है। कर्मा दुस्साहसी थे। घोर नक्सली क्षेत्र में वे बाइक से घूम आया करते थे। इन्हीं परिस्थितियों में नक्सलियों ने उन पर दो बार हमला भी किया था। इन हमलों में वो बाल-बाल बचे थे। उसके बाद राज्य सरकार ने उन्हें जेड-प्लस श्रेणी की सुरक्षा दी थी। सदा बुलेटप्रूफ कार में घूमने वाले कर्मा ने रैली के बाद अपनी कार क्यों छोड़ी, इसे लेकर भी लगातार प्रश्न हो रहा है, पर झीरम के अन्य प्रश्नों की तरह, इसका भी उत्तर नहीं मिल पाया है।
कभी राष्ट्रीय राजनीति के पर्याय्य रहे विद्याचरण उर्फ ‘विद्या भैया’ भी इस हमले के शिकार हुए। उन्हें नक्सलियों की तीन गोली लगी थी। 84 साल के विद्याचरण को हमले के बाद गुडग़ांव के मेंदाता हास्पीटल में भर्ती कराया गया था। 18 दिनों तक जीवन और मृत्यु से संघर्ष करने के बाद अंतत: 11 जून को उन्होंने प्राण त्याग दिए। वे 58 साल तक सक्रिय राजनीति में बनें रहे। उम्र के इस पड़ाव में उनकी राजनीतिक और शारीरिक इच्छाशक्ति गजब की थी। इस हमले में पटेल, कर्मा, शुक्ला के अतिरिक्त पूर्व विधायक उदय मुदलियार सहित कुल 32 नेता-पुलिसकर्मी मारे गए थे।
क्या ‘आन-द-स्पाट’ किया गया हमला
हमले के बाद सूचनाओं के माध्यम से ये बात सामने आई थी कि पांच सौ से ज्यादा नक्सलियों ने इस वारदात को अंजाम दिया था। इसके लिए वो कई दिनों से तैयारी कर रहे थे। दूसरी ओर एनआईए ने जब जांच शुरु की तब इसी एजेंसी के एक अफसर ने मीडिया से ये कहा था-‘नक्सली इस हमले को लेकर तैयारी कर रहे थे। उन्हें सूचना थी कि यहां से फोर्स निकलने वाली है।Ó प्रकाशित समाचारों के अनुसार, उक्त अधिकारी ने दावा किया था कि 25 मई 2013 की उस दोपहर तक स्थिति यह थी कि अगर कांग्रेस की जगह किसी अन्य पार्टी का भी काफिला उस मार्ग से लौट रहा होता तो उस पर भी हमला हो सकता था। हालांकि उक्त अधिकारी के इस दावे का खंडन न तो पुलिस ने, न ही विपक्ष ने और न ही नक्सलियों की ओर से किया गया।
राजनीतिक षडय़ंत्र के आरोप कितने सत्य?
झीरम हमले में प्रदेश कांग्रेस की अग्रिम पंक्ति के कई नेता मारे गए थे। इस हमले के बाद से अब तक इस हमले को लेकर राजनीतिक षडय़ंत्र के आरोप लगाए जाते रहे हैं। सत्ता और विपक्ष से जुड़े प्रमुख नेताओं पर आरोप लगाए जा रहे हैं। एनआईए ने अपनी जांच में इस वारदात को राजनीतिक षडय़ंत्र मानने से मना कर दिया। इसके बाद से ही विपक्ष सीबीआई जांच की मांग कर रहा है। विपक्ष के लगातार दबाव के बीच राज्य सरकार ने सीबीआई जांच की अनुशंसा तो कर दी, पर वो जांच अब तक शुरु नहीं हो पाई है। इधर, आज झीरम कांड की चौथी बरसी पर कांग्रेस भवन में आयोजित पत्रवार्ता में पीसीसी प्रमुख भूपेश बघेल ने ये कहकर फिर से सनसनी फैला दी कि झीरम का सच इसलिए सामने नहीं लाया जा रहा है कि इससे कई राजनीतिक लोगों के चेहरे बेनकाब हो जाएंगे!
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