498a (दहेज़ एक्ट) का दुरूपयोग यह कानून आप के लिए किस क़दर खतरनाक है और आप किस प्रकार खतरे में है और यह समाज के लिए कितना घातक है —
आपकी पत्नी द्वारा पास के पुलिस स्टेशन पर 498a दहेज़ एक्ट या घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत एक लिखित झूठी शिकायत करती है तो आप, आपके बुढे माँ- बाप और रिश्तेदार फ़ौरन ही बिना किसी विवेचना के गिरफ्तार कर लिए जायेंगे और गैर-जमानती टर्म्स में जेल में डाल दिए जायेंगे भले चाहे की गई शिकायत फर्जी और झूठी ही क्यूँ न हो! आप शायेद उस गलती की सज़ा पा जायेंगे जो आपने की ही नही और आप अपने आपको निर्दोष भी साबित नही कर पाएँगे और अगर आपने अपने आप
प्रथम सूचना रिपोर्ट FIR, पुलिस के कर्तव्य नागरिकों के अधिकार…
प्रथम सूचना रिपोर्ट(एफआईआऱ) पुलिस थाने या चौकी में दर्ज की गयी ऐसी पहली अपराध की रिपोर्ट को प्रथम सूचना रिपोर्ट या एफआईआर कहा जाता है। हर व्यक्ति अपने तरीके से अपराध के उस समय ज्ञात ब्योरे देते हुए रिपोर्ट लिखवा सकता है । पुलिस इस एफआईआऱ को अपने रिकॉर्ड में दर्ज कर लेगी और पावती के रुप में एक प्रति रिपोर्ट दर्ज कराने वाले को देगी। पुलिस सभी प्रकार के अपराधों की रिपोर्ट दर्ज करती है , लेकिन केवल संज्ञेय अपराधों के मामलों में ही पुलिस स्वयं जांच पड़ताल कर सकती है । असंज्ञेय अपराधों के मामलों में पुलिस पहले मामले को मजिस्ट्रेट को पेश करती है और उससे आदेश प्राप्त होने के बाद ही वह जांच-पड़ताल
कैदियों को सेक्स सबंध बनाने का अधिकार
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट मुताबिक जेल में बंद कैदियों को भी अब अपने पति या पत्नी से यौन संबंध बनाने का अधिकार मिलेगा। संविधान के मुताबिक ये एक मौलिक अधिकार है और कैदियों को इससे वंचित नहीं रखा जा सकता है। हाईकोर्ट का कहना है कि एक रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में कमेटी का गठन किया जाए। जो जेलों की हालत को समझकर एक दिशा-निर्देश बनाए। कमेटी ये तय करेगी कि किस तरह के कैदियों को और किस परिस्थिति में ये अधिकार दिया जाएगा। जेल के अंदर सुविधा बनाई जाएगी, जहां कैदी की पत्नी या उसका पति उससे मिल सके। कोर्ट के मुताबिक किस कैदी को यह अधिकार दिया जाएगा, ये सरकार तय करेगी। इसमें सामाजिक सरोकार और कानून व्यवस्थ
FIR दर्ज ना होने पर है शिकायत के प्रावधान जानें…
एफआईआर दर्ज ना होने पर शिकायत(परिवाद) :- जब पुलिस अधिकारी एफआईआर के आधार पर कार्यवाही नहीं करता है, तब व्यथित व्यक्ति उस मजिस्ट्रेट को शिकायत कर सकता है , जिसे उस अपराध पर संज्ञान लेने की अधिकारिता है । अगर एफआईआर दर्ज न हो तो पीड़ित पक्ष इलाके के अडिशनल चीफ मेट्रोपॉलिटन मैजिस्ट्रेट या चीफमेट्रोपॉलिटन मैजिस्ट्रेट के सामने सीआरपीसी की धारा -156 (3) के तहत शिकायत कर सकता है। हर जिला अदालत में एक अडिशनल चीफ मेट्रोपॉलिटन मैजिस्ट्रेट बैठता है। दिल्ली से बाहर के मामले में चीफ जूडिशियल मैजिस्ट्रेट ( सीजेएम ) के सामने शिकायत की जा सकती है। इसके बाद अदालत मामले को संबंधित मैजिस्ट्रेट को रेफर करती है।
किसी निर्णय के अनुपालन में निर्धारित की गई समय सीमा…
निर्णय के अनुपालन की समय-सीमा अगर किसी को उसकी जमीन या अन्य अचल संपत्ति से गैर-कानूनी तरीके से वंचित कर दिया गया है तो वंचित किए जाने के 12 साल की अवधि में अपनी संपत्ति की वापसी का दावा दायर कर देना चाहिए । हालांकि सरकार तीस साल तक ऐसा दावा कर सकती है । किसी ऋण या चल संपत्ति की वापसी का मुकदमा भुगतान की तारीख या उसकी प्राप्ति स्वीकृति की तारीख के 3 साल के भीतर किया जाना चाहिए। वस्तुओं के मूल्य के बारे में मुकदमा संबंधित सौदे के 3 साल के भीतर कर दिया जाना चाहिए। किसी हमले से हुए नुकसान या मृत्यु के मुआवजे का दावा घटना के 1 साल के भीतर कर दिया जाना चाहिए। किसी करार को किए जाने के 3 साल के भीतर