FIR कैसे करें, किन बातों का ख्याल रखें, क्या है जीरो Fir जाने…
FIR में नागरिकों के अधिकार
भारत जैसे विशाल देश में विधि-व्यवस्था को बनाये रखने हेतु हमारे संविधान ने कानून-व्यवस्था की नींव रखी. देश के वीर जवानों एवं अन्य पैरामिलिट्री फ़ोर्स के उलट हमारी पुलिस-व्यवस्था का मुख्य कार्य आतंरिक शांति एवं सुरक्षा को बनाये रखना होता है. मगर क्या आपने कभी सोचा है की किसी भी अपराध के छानबीन एवं गुनाहगार तक पहुँचने की यात्रा की शुरुआत आखिर कहाँ से होती है? जी हाँ आपने सही सोचा, ये होती है FIR या फिर फर्स्ट इन्वेस्टीगेशन रिपोर्ट से.
आपके द्वारा किसी भी अपराध के विरुद्ध लिखाई गयी कंप्लेंट ही पुलिस को आप पर हुई अपराध के बारे में सुचित करती हैं एवं पुलिस आपके शिकायतों का निबटारा करने हेतु बाध्य होते हैं, और हो भी क्यों न आखिर ये उनकी ज़िम्मेदारी जो ठहरी. मगर कभी-कभी ये भी देखा जाता हैं कि आम लोगो के बीच फैली जागरूकता में कमी एवं पुलिसिया कार्यवाही में अरुचि लोगों को पुलिस तक अपनी शिकायतें पहुँचने नहीं देती एवं अमूमन आगे की कार्यवाही हेतु FIR रजिस्टर्ड करने में पुलिस वाले आना-कानी करने लगते हैं.
जनता के बीच फैली इन्ही भ्रांतियों को दूर कर लोगो को उनके मौलिक अधिकारों से जुडी FIR एवं FIR सम्बंधित समस्त जानकारियों की एक सूची बना हमारे लीगल एक्सपर्ट ने जनता का मार्गदर्शन करने की कोशिश की हैं. हमे विश्वास हैं की ये आपको जरुर पसंद आएगी.
FIR से जुड़े आपके अधिकार:
ध्यान दे FIR एक शिकायत होती है जो किसी व्यक्ति/समूह के मूल अधिकारों के हनन पर उपरोक्त थाने में दर्ज करायी जा सकती हैं. आइये एक नज़र डालते हैं FIR से जुड़े आपके अधिकारों पर
FIR, पीड़ित या फिर पीड़ित के किसी भी जानकर या फिर किसी भी अन्य व्यक्ति द्वारा दर्ज करायी जा सकती हैं एवं पुलिस कर्मी किसी भी रूप में आपके शिकायतों को सुनने एवं उसे दर्ज करने से मना नहीं कर सकते. आप अपने शिकायतों को लिखित या मौखिक में भी दर्ज करा सकते हैं. ध्यान दे मौखिक में दर्ज करायी गयी FIR को आप पुलिसकर्मी द्वारा सुनाने का भी अनुरोध कर सकते हैं. अपने द्वारा दर्ज शिकायतों को पूरी तरह सुनने एवं पढने के बाद ही आप FIR रिपोर्ट में हस्ताक्षर करे. इस कार्य में कोई भी आप पर दबाव नहीं डाल सकता. ध्यान दे आपके द्वारा दर्ज की गयी FIR ही कानू-व्यवस्था की नींव होती हैं अतः FIR दर्ज करते वक़्त सही एवं सटीक जानकारियां देना अपनी ज़िम्मेदारी समझे.
अब ये ZERO FIR क्या होता हैं:
अक्सर FIR दर्ज करते वक़्त आगे के कार्यवाही को सरल बनाने हेतु इस बात का ध्यान रखा जाता हैं कि घटनास्थल से संलग्न थाने में ही इसकी शिकायत दर्ज हो परन्तु कई बार ऐसे मौके आते हैं जब पीड़ित को विपरीत एवं विषम परिस्थितियों में किसी बाहरी पुलिस थाने में केस दर्ज करने की जरुरत पड़ जाती हैं. मगर अक्सर ऐसा देखा जाता हैं कि पुलिस वाले अपने सीमा से बहार हुई किसी घटना के बारे में उतने गंभीर नहीं दिखाए देते. ज्ञात हो कि FIR आपका अधिकार हैं एवं आपके प्रति हो रही असमानताओ का ब्यौरा भी, अतः सरकार ने ऐसे विषम परिस्थितियों में भी आपके अधिकारों को बचाए रखने हेतु ZERO FIR का प्रावधान बनाया है. इसके तहत पीड़ित व्यक्ति अपराध के सन्दर्भ में अविलम्ब कार्यवाही हेतु किसी भी पुलिस थाने में अपनी शिकायत दर्ज करवा सकते हैं एवं बाद में केस को उपरोक्त थाने में ट्रान्सफर भी करवाया जा सकता हैं.
कब करे zero FIR का उपयोग:
हत्या, रेप एवं एक्सीडेंट्स जैसे अपराध जगह देखकर नहीं होती या फिर ऐसे केसेस में ये भी हो सकता है कि अपराध किसी उपरोक्त थाने की सीमा में न घटित हो. ऐसे केसेस में तुरंत कार्यवाही की मांग होती है परन्तु बिना FIR के कानून एक कदम भी आगे नहीं चल पाने में बाध्य होती हैं. अतः ऐसे मौको में मात्र कुछ आई-विटनेस एवं सम्बंधित जानकारियों के साथ आप इसकी शिकायत नजदीकी पुलिस स्टेशन में करवा सकते हैं. ध्यान रहे लिखित कंप्लेंट करते वक़्त FIR की कॉपी में हस्ताक्षर कर एक कॉपी अपने पास रखना न भूले.
ये ज्ञात हो की FIR दर्ज कर कानूनी प्रक्रिया को आगे बढाने की सारी ज़िम्मेदारी पुलिसवालो का प्रधान उद्देश्य होती हैं अतः कोई भी पुलिस वाला सिर्फ ये कहकर आपका FIR लिखने से मना नहीं कर सकता कि ” ये मामला हमारे सीमा से बाहर का है”
प्रवीण जैन अधिवक्ता रायपुर
9406133701, www.praveenjain.in
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